
उत्तर प्रदेश के मत्स्य मंत्री और निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने एक बार फिर राजनीति के पानी में हलचल मचा दी। बोले:
“अगर दिक्कत है तो बीजेपी हमसे अलग हो सकती है!”
इतनी सधी हुई तल्ख़ी बहुत कम देखने को मिलती है। शब्द भी मीठे, वार भी तीखा। राजनीति के इस व्यंजन में अब नया फ्लेवर जुड़ चुका था — ब्लैक कॉफी और बकलावा का!
‘धोतीधारी’ डैमेज कंट्रोल में
जैसे ही संजय की आवाज़ सत्ता की दीवारों से टकराई, ‘धोतीधारी’ ब्रजेश पाठक (उपमुख्यमंत्री और संकटमोचक) तुरंत एक्टिव हो गए।
संजय निषाद को सीधा राजभवन वाले घर में इनवाइट किया गया — अब भाई, राजनीति में रिश्ते भी VIP चाय पार्टी से बनते हैं।
‘बकलावा डिप्लोमेसी’: बातों में मिठास, अंदर थी तल्ख़ी
बैठक में ‘टी’ नहीं थी, क्योंकि मुद्दा गरम था। गुनगुना पानी, ब्लैक कॉफी, और बीच में खाया गया तुर्की मिठाई बकलावा — यानी मीठा खाओ, मीठा बोलो।
संजय निषाद का जवाब :
“हम साथ-साथ हैं!”
पर अंदाज़ ऐसा था जैसे कोई कहे — “घर मत छोड़ो, लेकिन जूते अपनी जगह रखो।”

टारगेट पर बीजेपी के इम्पोर्टेड नेता
संजय निषाद ने इशारों ही इशारों में बीजेपी के ‘आरक्षण-प्रेमी इम्पोर्टेड नेताओं’ पर भी हमला बोला:
“जिन्हें टिकट तक नहीं मिला, वे अब आरक्षण के ठेकेदार हैं। कभी कुंभ, कभी सम्मेलन… नतीजा? ज़ीरो बट्टा सन्नाटा!”
यह सियासी तीर सीधे उनके सीने में जा लगा जो सोशल मीडिया पर दिन-रात निषाद समाज के ‘मसीहा’ बने फिरते हैं।
राजनीति में चाय नहीं, अब कॉफी काम करती है
इस पूरे ड्रामे के बाद निष्कर्ष साफ़ है:
गठबंधन टिका है, पर कॉफी के तापमान पर मीठा बोला जा रहा है, पर ब्लैक कॉफी की कड़वाहट भी झलक रही है और राजनीति अब ‘बकलावा डिप्लोमेसी’ में बदल गई है।
“राजनीति अब विचारधारा से नहीं, मेहमाननवाज़ी और माउथफ्रेशनर से चलती है।”
बकलावा खाइए, ब्लैक कॉफी पीजिए… और गठबंधन में बने रहिए — फिलहाल के लिए।
“पिस्टल की गूँज, स्वर्ण-रजत संग!” – गुरप्रीत‑अमनप्रीत ने किया धमाल